बुधवार, 23 दिसंबर 2009

अभी न सीखो प्यार

नमस्कार दोस्तों ! आज मैं आपके सामने एक प्रेम कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ ! आशा करता हूँ आप लोगों को पसंद आयेगी !

यह पान फूल सा मृदुल बदन
बच्चों कि जिद सा अल्हड मन
तुम अभी सुकोमल,बहुत सुकोमल,अभी सीखो प्यार !

कुंजों की छाया मैं झिलमिल
झरते हैं चांदी के निर्झर
निर्झर से उठते बुदबुद पर
नाचा करती परियां हिलमिल
उन परियों से भी कहीं अधिक
हल्का फुल्का लहराता तन
तुम अभी सुकोमल, बहुत सुकोमल ,अभी ना सीखो प्यार

तुम जा सकतीं नभ पार अभी
लेकर बादल की मृदुल तरी
बिजुरी की नव चमचम चुनरी
से कर सकतीं श्रृंगार अभी
क्यों बाँध रही हो सीमाओं में
यह धुप सदृश खिलता यौवन ?
तुम अभी सुकोमल,बहुत सुकोमल ,अभी ना सीखो प्यार !

अब तक तो छाया है खुमार
रेशम की सलज निगाहों पर
हैं अब तक कांपे नहीं अधर
पाकर अधरों का मृदुल भार
सपनों की आदी ये पलकें
कैसे सह पाएंगी चुम्बन ?

तुम अभी सुकोमल,बहुत सुकोमल ,अभी ना सीखो प्यार !
यह पान फूल सा मृदुल बदन
बच्चों सी जिद सा अल्हड मन !