कैसे समझूँ चाँद तुम्हे?
महसूस होने लगती है
चकोर की निगाहों की थकन
कैसे समझूँ गुलाब तुम्हे?
लहूलुहान हो जाती है
सोच
अपनी ही
कैसे समझूँ उन्मुक्त पवन तुम्हे?
पँख
कट ही जाते हैं
मन के
कैसे समझूं ख़ामोशी तुम्हे?
व़क्त
ठहर सा जाना चाहेगा
तुम्हारी आँखों को
पढ़ने की कोशिश में
कैसे समझूँ शब्द तुम्हे?
जो चुक जाते हैं
अक्सर
अब बताओ तुम्ही
क्या और कैसे
समझूँ तुम्हे?
महसूस होने लगती है
चकोर की निगाहों की थकन
कैसे समझूँ गुलाब तुम्हे?
लहूलुहान हो जाती है
सोच
अपनी ही
कैसे समझूँ उन्मुक्त पवन तुम्हे?
पँख
कट ही जाते हैं
मन के
कैसे समझूं ख़ामोशी तुम्हे?
व़क्त
ठहर सा जाना चाहेगा
तुम्हारी आँखों को
पढ़ने की कोशिश में
कैसे समझूँ शब्द तुम्हे?
जो चुक जाते हैं
अक्सर
अब बताओ तुम्ही
क्या और कैसे
समझूँ तुम्हे?