मंगलवार, 29 सितंबर 2009

दिल्ली की सैर

नमस्कार दोस्तों !क्या आपने कभी सोचा है कि जो लोग दूर दराज के गावों से दिल्ली शहर में आते हैं तो उन्हें कैसा लगता है ?मेरी कविता भी कुछ ऐसी ही है |

लल्लू से बोली लल्ली
मैं जाऊंगी कल दिल्ली
हो !क्या कहने मेमसाब
तुम भी हो गई शेखचिल्ली

खिसियाकर बोल पड़ा लल्लू
लल्ली की उड़ा रहा खिल्ली
लेकिन लल्ली ने ठान लिया
वह चल ,भागी,पहुँची दिल्ली

दिल्ली के भीड़ भड़क्के में
ऐसी घबरायी ,चकराई
किस ओर चलूँ,किस ओर भगूं
यह लल्ली समझ पाई

इससे तो गाँव भला मेरा
थी सोच रही मन में लल्ली
रहती हूँ जहाँ मज़े से में
मुझे चाहिए यह दिल्ली

थी थकी, मगर वह लौट पड़ी
भूखी प्यासी सहमी लल्ली
लल्लू जो राह देखता था
बोला-क्या हो आई दिल्ली?

कैसी लगी कविता दोस्तों? नमस्कार!

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

बेशर्म मेहमान

नमस्कार दोस्तों! क्या आपका किसी ऐसे मेहमान से पाला पड़ा है ,जिसने आपको परेशान कर दिया हो ?मेरी कविता भी ऐसे ही मेहमान पर केंद्रित है |


होते हैं कुछ ऐसे लोग
जिन्हें होता प्यारा मान
मानो या भी मानो
बन जाते फिर भी मेहमान

देल्ली मैं रहते रहते
विवेकजी थे बहुत उदास
सैर सपाटा करने को वह
पहुंचे लखनऊ मित्र के पास

मित्र गोलू मिले प्रेम से
खातिर मान हुआ डटकर
विवेकजी रम गए वहीं पर
बिसरी देल्ली ,भूले घर

दिन, सप्ताह, महीने बीते
विवेकजी रुक गए वहीं
मित्र गोलू ने लज्जा से
जाने को भी कहा नहीं

एक दिन साहस करके वह
विवेकजी से बोले
कुछ आज देल्ली की बात चले
घर वालों की चर्चा हो ले

विवेक! बिन तुम्हारे तो
घरवाले सभी दुखी होंगे
दिन-रात तुम्हारे आने की
वे राह सदा तकते होंगे

विवेकजी बोल पड़े झट से
मैं भी तो इसी सोच मैं हूँ
करता हूँ अभी कॉल उनको
जिससे सबको ही बुलवा लूँ |

कैसी लगी कविता दोस्तों ?नमस्कार!

मेरे हाथ बंधे हैं - मंगत राम सिंघल ,श्रम मंत्री ,देल्ली

नमस्कार दोस्तों ! जैसा कि आप जानते हैं ,देल्ली में निर्माण कार्य जोरों पर है |जो मजदूर इन कार्यों में लगे हैं क्या किसी ने सोचा है ,वे किन परिस्थितियों में काम करते हैं ?कितने घंटे काम करते हैं? ,और सबसे बड़ी बात कितनी पगार पर काम करते हैं ?कानून कहता है कि आठ घंटे कि मजदूरी के लिए मजदूर को कम से कम १५२ रुपये कि राषी तय है, जबकि इन मजदूरों को जो कि काम की तलाश में दूर दराज से आते हैं ,उन्हें १० से १२ घंटे काम करने के लिए मिलते हैं सिर्फ़ ९० से १०० रुपये |इस पर हमारे श्रम मंत्री ,श्री मंगत राम सिंघल जी का कहना है कि मेरे हाथ बंधे हैं ,मैं कुछ नहीं कर सकता|इन गरीब और अशिक्षित मजदूरों कि लाचारी तो समझ मैं आती है ,पर मंत्रीजी और अधिकारियों कि मजबूरी मेरी समझ से बाहर है |क्या इस समस्सया का कोई समाधान हो सकता है ?जरूर बतायेअगा | नमस्कार!

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

खाना खजाना

नमस्कार दोस्तों ! आने वाला मौसम त्योहारों और शादियों का है |इस मौसम में खाने का जायका भी लाजवाब होता है | मुझे यह मौसम बहुत अच्छा लगता है क्योंकि इस मौसम में खाने का मज़ा अलग ही है | पेश है इसी पर एक कविता|


मटर, पनीर, टमाटर, आलू
लौकी,भिन्डी,बैंगन
पूड़ी और कचोरी खस्ता
सभी चटपटे व्यंजन

चुकुंदुर,खीरे की सलाद है
पापड़,चटनी,भुजिया
बूंदी का रायता सौंठ है
दही,पकोड़ी ,गुझिया

विवेकजी को बड़े प्रेम से
खिला रहे हैं अंकुर लाल
और लीजेये,और खाइए
क्या परसूं,क्या लाऊं माल

बहुत खा लिया ,तृप्त हो गया
नहीं पेट मैं अब स्थान
है स्वादिस्ट बहुत ही भोजन
ला दो बस अब मीठा पान

लेकिन गरम इमरती भी तो
उससे पहले है खानी
शब्द "इमरती "सुनकर आया
विवेकजी के मुंह पानी

कैसी लगी कविता दोस्तों ?नमस्कार!

धन्यवाद

नमस्कार दोस्तों !मुझे आप सभी पाठकों की टिप्पीडियान मिल रही हैं |मैं भी अपने ब्लॉग से वर्ड वेरिफिकेशन को हटाना चाहता हूँ ,लेकिन मैं कर नहीं पा रहा हूँ |अगर कोई पाठक मेरी मदद कर दें , तो मैं उनका एहसानमंद रहूँगा| अच्छा तो मैं एक कविता पेश करना चाहूंगा |


जीवन कभी सूना ना हो
कुछ मैं कहूं ,कुछ तुम कहो |


तुमने मुझे अपना लिया
यह तो बड़ा अच्छा किया
जिस सत्य से मैं दूर था
वह पास तुमने ला दिया


अब ज़िन्दगी की धार में
कुछ मैं बहूँ ,कुछ तुम बहो |


जिसका हृदय सुंदर नहीं
मेरे लिए पत्थर वही
मुझको नयी गति चाहिए
जैसे मिले ,वैसे सही


मेरी प्रगति की साँस मैं
कुछ मैं रहूँ ,कुछ तुम रहो |


मुझको बड़ा सा काम दो
चाहो कुछ आराम दो
लेकिन जहाँ थक कर गिरूँ
मुझको वहीं तुम थाम लो


गिरते हुए इंसान को
कुछ मैं गहूं ,कुछ तुम गहो |


संसार मेरा मीत है
सौंदर्य मेरा गीत है
मैंने कभी समझा नहीं
क्या हार है, क्या जीत है


सुख दुःख तुम्हें जो भी मिलें
कुछ मैं सहूँ ,कुछ तुम सहो |


कैसी लगी कविता दोस्तों ,नमस्कार |


बुधवार, 23 सितंबर 2009

महंगाई को हराना है

नमस्कार दोस्तों ! दिवाली के दिन करीब हैं | दिवाली से दो शब्द मेरे जहन मैं आते हैं "दिवाला" और "महंगाई"| खैर साब महंगाई तोः विश्व्व्याप्त है |कभी आपने सोचा है कि महंगाई को कैसे हराया जाए ? वैसे तो बहुत तरीके हो सकते हैं ,पर एक तरीका मेरी समझ मैं आता है ,वह यह कि अपनी वर्तमान आर्थिक स्तिथि का जायजा लेना और उसके अनुरूप निवेश करना | जी हाँ निवेश करना | अब आप सोचेंगे कि निवेश से महंगाई का क्या मतलब |मतलब है साब |सबसे पहले आप देखिये कहाँ निवेश कर सकते हैं ?

लिकुइड प्लस फंड : इस फंड मैं आप ३ से ६ महीने के लिए निवेश कर सकते हैं, जिसका आपको १० से १५ % तक रिटर्न मिल सकता है | यह फंड किसी विश्वसनीय सरकारी या गैर सरकारी कंपनी से लिया जा सकता है |जिससे आपका पैसा कंपनी के विकास कार्यों मैं निवेश होता है ,और आपको बेहतर रिटर्न मिलता है |

पेंशन प्लान : इस प्लान मैं आपको एक सिमित अवधि तक एकमुश्त राशि देनी पड़ती है ,जिससे बाद मैं आपके बुजुर्ग होने पर आपको सही रिटर्न मिलता है ,जिससे आपकी जीवनशैली पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता और आप सम्मान के साथ अपनी बाकी ज़िन्दगी गुजार सकते हैं |

भूमि मैं निवेश : यह निवेश मुख्यत उन लोगों के लिए सही है जिनके पास एक बड़ी मुश्तराशी हो |

सोने मैं निवेश : जी हाँ , सोने मैं निवेश करना हमेशा से ही एक अच्छा विकल्प रह है| आज सोने का क्या दाम है ,आप सभी जानते हैं |

इसके अलावा भी बहुत से निवेश हैं जो आप अपना सकते हैं पर बेहतर है कि एक बार आप किसी अच्छे आर्थिक सलाहकार से सलाह जरूर करें |
क्योंकि मर्जी है आपकी आख़िर पैसा है आपका | नमस्कार




मंगलवार, 22 सितंबर 2009

सर्दी की कविता

नमस्कार दोस्तों !आज मैं आपके लिए एक कविता लेकर आया हूँ |क्योंकि सर्दियां शुरू होनेवाली हैं|यह कविता भी उसी पर है|


उनी कपड़े तरह तरह के
गद्दे और रजाई
दादीजी ने छत पर जाकर
उनको धूप लगाई

स्वेटर पैंट कोट कितने ही
कम्बल खेस पुराने
शालें मुफ्फ्लेर टोपी टोपा
चादर मौजे दस्ताने

वहीं पास मैं एक पेड़ पर
बैठे बन्दर मामा
कूदे झपटे उठा ले गए
फटा एक पजामा

बूढी अम्मा ताप रही हैं
जला जला कर आग
गाते गाते मगन हो रहीं
तरह तरह के राग

खेस लपटे टोपा बांधे
बाबा टहल रहे हैं
धीरे धीरे होंठ हिलाकर
माला फेर रहे हैं

मूंगफली खा रहा विनय है
विवेक खा रहा काजू
खड़ा अंकुर खा रहा पिस्ता
किशमिश खाता राजू

गजक रेवडी खाते भइया
भाभी खातीं हलुआ
गरम जलेबी खाकर पीता
दूध केसरी कलुआ

क्यों दोस्तों कैसी लगी कविता |
नमस्कार |