नमस्कार दोस्तों ! आज मैं आपके सामने एक प्रेम कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ ! आशा करता हूँ आप लोगों को पसंद आयेगी !
यह पान फूल सा मृदुल बदन
बच्चों कि जिद सा अल्हड मन
तुम अभी सुकोमल,बहुत सुकोमल,अभी न सीखो प्यार !
कुंजों की छाया मैं झिलमिल
झरते हैं चांदी के निर्झर
निर्झर से उठते बुदबुद पर
नाचा करती परियां हिलमिल
उन परियों से भी कहीं अधिक
हल्का फुल्का लहराता तन
तुम अभी सुकोमल, बहुत सुकोमल ,अभी ना सीखो प्यार
तुम जा सकतीं नभ पार अभी
लेकर बादल की मृदुल तरी
बिजुरी की नव चमचम चुनरी
से कर सकतीं श्रृंगार अभी
क्यों बाँध रही हो सीमाओं में
यह धुप सदृश खिलता यौवन ?
तुम अभी सुकोमल,बहुत सुकोमल ,अभी ना सीखो प्यार !
अब तक तो छाया है खुमार
रेशम की सलज निगाहों पर
हैं अब तक कांपे नहीं अधर
पाकर अधरों का मृदुल भार
सपनों की आदी ये पलकें
कैसे सह पाएंगी चुम्बन ?
तुम अभी सुकोमल,बहुत सुकोमल ,अभी ना सीखो प्यार !
यह पान फूल सा मृदुल बदन
बच्चों सी जिद सा अल्हड मन !
4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर भाई , बढ़िया रचना ।
काफी ताजापन था इस कवितानुमा में, आपकी जवानी को बधाई कि कविता समय पर बन आई।
अच्छा लगा आपका ये प्रेमगीत .. बधाई हो
अति सुंदर रचना। दोस्त तुमने लिखा बंद क्यों कर दिया, नई पोस्ट शीघ्र डालो।
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