शनिवार, 31 जुलाई 2010

प्रेम कविता

ऐ सनम  तुम मुझे बतलाओ  
तुम्हारे इन रेशमी बालों  को
अपने इन  हाथों  से सहलाऊं
या घर जाकर इन्हीं हाथों  से
बूढ़ी मां कै पैर दबाऊं 
ऐ सनम तुम मुझे बतलाओ
कल चांदनी रात में लिखी  थी जो
तुम पर वो कविता सुनाऊं
या गरीबों की बस्ती में  जाकर
उन्हें कविता जैसी चीजों  को
बेअटक पढ़ना सिखाऊं
ऐ सनम  तुम मुझे बतलाओ
चांद तोड़कर लाने जैसी

निरर्थक बातों से
कहो तो बार-बार तुम्हें  बहलाऊं
या राष्ट्र विकसित  कैसे बने 
इस प्रश्न पर समय खपाऊं
ऐ सनम तुम मुझे बतलाओ
डर लगता है तुम्हारा प्रेम  मुझे
परिवार, समाज, राष्ट्र से विमुख न कर दे
इनके प्रति जो कर्तव्य  है मेरा
उसमें तुम बाधा न बन  जाओ
ऐ सनम मुझे बतलाओ
ऐ सनम तुम मुझे बतलाओ 

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