शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

बेशर्म मेहमान

नमस्कार दोस्तों! क्या आपका किसी ऐसे मेहमान से पाला पड़ा है ,जिसने आपको परेशान कर दिया हो ?मेरी कविता भी ऐसे ही मेहमान पर केंद्रित है |


होते हैं कुछ ऐसे लोग
जिन्हें होता प्यारा मान
मानो या भी मानो
बन जाते फिर भी मेहमान

देल्ली मैं रहते रहते
विवेकजी थे बहुत उदास
सैर सपाटा करने को वह
पहुंचे लखनऊ मित्र के पास

मित्र गोलू मिले प्रेम से
खातिर मान हुआ डटकर
विवेकजी रम गए वहीं पर
बिसरी देल्ली ,भूले घर

दिन, सप्ताह, महीने बीते
विवेकजी रुक गए वहीं
मित्र गोलू ने लज्जा से
जाने को भी कहा नहीं

एक दिन साहस करके वह
विवेकजी से बोले
कुछ आज देल्ली की बात चले
घर वालों की चर्चा हो ले

विवेक! बिन तुम्हारे तो
घरवाले सभी दुखी होंगे
दिन-रात तुम्हारे आने की
वे राह सदा तकते होंगे

विवेकजी बोल पड़े झट से
मैं भी तो इसी सोच मैं हूँ
करता हूँ अभी कॉल उनको
जिससे सबको ही बुलवा लूँ |

कैसी लगी कविता दोस्तों ?नमस्कार!

5 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

बहुत खूब
करता हूँ अभी कॉल उनको
जिससे सबको ही बुलवा लूँ |
अब क्या करोगे भैया

Mishra Pankaj ने कहा…

भाई मेहमान मेहमान होते है तो बेशर्म क्यों अगर मेशार्म है तो आप उन्हें मेहमान क्यों मान रहे है :)

mast kaveeta

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत खूब जी अच्छी लगी शुभकामनायें

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन रचना ।

http://sanjaybhaskar.blogspot.com

सुनीता शानू ने कहा…

हाँ यही ठीक रहेगा। घर वालो को भी बुला लिया जाये। दोस्त को भी तो पता चले मेहमान नवाजी करना आसान नही। जब तक पकड़ के बाहर न निकाले डटे रहना चाहिये...:)