नमस्कार दोस्तों ! आने वाला मौसम त्योहारों और शादियों का है |इस मौसम में खाने का जायका भी लाजवाब होता है | मुझे यह मौसम बहुत अच्छा लगता है क्योंकि इस मौसम में खाने का मज़ा अलग ही है | पेश है इसी पर एक कविता|
मटर, पनीर, टमाटर, आलू
लौकी,भिन्डी,बैंगन
पूड़ी और कचोरी खस्ता
सभी चटपटे व्यंजन
चुकुंदुर,खीरे की सलाद है
पापड़,चटनी,भुजिया
बूंदी का रायता सौंठ है
दही,पकोड़ी ,गुझिया
विवेकजी को बड़े प्रेम से
खिला रहे हैं अंकुर लाल
और लीजेये,और खाइए
क्या परसूं,क्या लाऊं माल
बहुत खा लिया ,तृप्त हो गया
नहीं पेट मैं अब स्थान
है स्वादिस्ट बहुत ही भोजन
ला दो बस अब मीठा पान
लेकिन गरम इमरती भी तो
उससे पहले है खानी
शब्द "इमरती "सुनकर आया
विवेकजी के मुंह पानी
कैसी लगी कविता दोस्तों ?नमस्कार!
7 टिप्पणियां:
भैया आपने तो मेरे मुंह में पानी ला दिया! जबसे दिल्ली में आये हैं पेट अक्सर खराब हो जाता है इसलिए अब पक्के परहेजी बन गए हैं.
अच्छा लिख रहे हैं. जमे रहें.
क्या डोले, शोले!:)
विश यू बेस्ट ओफ भूख ..
वाह! कविता बड़ी स्वादिष्ट है
हमें भूख लग आई!!
बहुत ही बेहतरीन रचना ।
बहुत ही बेहतरीन रचना ।
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
mughe to bhookh lagi hai zoro se
बहुत स्वादिष्ट कविता है|
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