उनी कपड़े तरह तरह के
गद्दे और रजाई
दादीजी ने छत पर जाकर
उनको धूप लगाई
स्वेटर पैंट कोट कितने ही
कम्बल खेस पुराने
शालें मुफ्फ्लेर टोपी टोपा
चादर मौजे दस्ताने
वहीं पास मैं एक पेड़ पर
बैठे बन्दर मामा
कूदे झपटे उठा ले गए
फटा एक पजामा
बूढी अम्मा ताप रही हैं
जला जला कर आग
गाते गाते मगन हो रहीं
तरह तरह के राग
खेस लपटे टोपा बांधे
बाबा टहल रहे हैं
धीरे धीरे होंठ हिलाकर
माला फेर रहे हैं
मूंगफली खा रहा विनय है
विवेक खा रहा काजू
खड़ा अंकुर खा रहा पिस्ता
किशमिश खाता राजू
गजक रेवडी खाते भइया
भाभी खातीं हलुआ
गरम जलेबी खाकर पीता
दूध केसरी कलुआ
क्यों दोस्तों कैसी लगी कविता |
नमस्कार |
8 टिप्पणियां:
welcome to blogosphere
swagat hain bandhu ! word verification hata lo plz ,yah aadmi ko tippni karne mein vevazah pareshan kartee hain ...............
बधाई ,
बड़े एडवांस है आप तो बंधु,
सर्दी से पहले ही इसकी अनूभूति, लगे रहो, ब्लॉग जगत में स्वागत है आपका ।
ये वेरीफीकेशन को हटाओ यार, बड़ा तकलीफदेह है यह तो ।
कविता लाजवाब है। चिट्ठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. सतत लेखन के लिए शुभकामनाएं.मेरे ब्लोग पर भी पधारें।
अरे बहुत हीं अच्छी बन पड़ी है यह कविता । बहुत सुन्दर ।
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.
गुलमोहर का फूल
बहुत ही बेहतरीन रचना ।
बहुत ही बेहतरीन रचना ।
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बड़े एडवांस है आप तो बंधु,
सर्दी से पहले ही इसकी अनूभूति, लगे रहो,
बहुत ही बेहतरीन रचना ।
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है. मेरी शुभकामनाएं.मेरे ब्लॉग पर भी पधारें।
http://gangu-teli.blogspot.com
एक टिप्पणी भेजें